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गीतों की खेती करता हूँ / दीनानाथ सुमित्र
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गीतों की खेती करता हूँ
सारी फसल आपकी खातिर
कीचड़ में ही जन्म हुआ था
पर हूँ कमल आपकी खातिर
गीत, दीन का तड़प रहा है भूख प्यास से
लेकिन युग-युग से जीवित है, लिये अमरता
इसके लोहेपन को कौन चुनौती देगा
एक सुबह जीतेगा यह भी लड़ता-लड़ता
हृदय रक्त का पान कराकर
करता सबल आपकी खातिर
इसे देखिये, इसके तन पर वस्त्र नहीं है
इसकी छत आकाश, बिस्तरा काटों का है
यह मरने का नाम नहीं लेने वाला है
इस पर कितनी बार कहर कितना बरपा है
नहीं हारने वाला है यह
होगा सफल आपकी खातिर
कैसा लगा गीत यह इसमें ज्वाल भरा है
मन-मन का यह दीप जला देगा दुनिया में
इसे मिटाना, इसे बनाना सब आता है
जीने की फिर नई कला देगा दुनिया में
इसे सँभालो, इसे सँवारो
इसका अनल आपकी खातिर।