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गीत-कि सोचै छै आज जनाना / धीरज पंडित
Kavita Kosh से
कि सोचैऽ छै आज जनाना
कि सोचैऽ छै...
न´ राक्खै माथा पर अँचरा
न´ देहो पर ओढ़नी
हय देखी कऽ गाँव-शहर मऽ
सबकऽ लागै घूरनी
न´ जानों करखनी कि होतैऽ
न´ छै कोउनो ठिकाना...
कि सोचैऽ छै आज जनाना...
माय-बहिन-पत्नी के रूप मऽ
देवी रूपनी कहाबै छै
लेकिन पश्चिम के रंगो मऽ
आपनो रूप सजावै छै
आपनो रूप सजावै छै
हाफ पैंट मिनी स्कर्ट मऽ
सजलो रूप सुहाना
कि सोचैऽ छै आज जनाना...
ई विकृति मन के धर्मों सऽ
भारत के खुशहाली मऽ
जेना लागै छाप छोड़लकैऽ
सभ्यता के बदहाली मऽ
”धीरज बड़ी मुश्किल छै भैया
आज खनू समझाना
कि सोचैऽ छै आज जनना