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गीत-बिकी गेलै कुर्सी के खातिर / धीरज पंडित
Kavita Kosh से
बिकी गेलै कुर्सी के खातिर ईमान हों
केकरा से कहबोॅ ई के छै इन्सान हो-अहो केकरा
एक-एक आदमी दू-दू सीट पर
लड़ै छै वोट लेली, आपनोॅ उम्मीद पर
एक ठो पे न´ छै भरोसा कैन्होॅ अनुमान हो- अहो केकरा
फिल्मी हीरो करै परचार हो
वोट से सिनेमा के, कैन्हों छै प्यार हो
कामयाब नेता के करै गुणगान हो-अहो केकरा
आपनोॅ-आपनोॅ जीत लेली, आदमी बैठाबै
देशोॅ पेॅ मरै बाला, लीडर कहाबै
एक वोट खातिर दै छै आपनों परान हो- अहो केकरा
भाई रे भतीजा के दै छै दुहाई
जात-पात के भड़काबै, करै रूसवाई
देश के उन्नत्ती लेली, करै छै बखान हो - अहो केकरा
सुनोॅ-सुनोॅ हमरोॅ देश के निवासी
मिली-जूली जाय जै मैं काबा आरू काशी
काँनी-काँनी ”धीरज“ होकरो करै सम्मान हो- अहो केकरा