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गीत-मन्त्र / कुमार रवींद्र
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सुनो, बन्धु
यह गीत-मन्त्र है
इसे जपो पूरे मन से
इसमें भेद छिपा है
तुलसी औ' कबिरा की बानी का
जिक्र हुआ है इसमें
गंगा-कावेरी के पानी का
इसमें माटी-गंध
भरी है
जानो रामखिलावन से
रामखिलावन है हलवाहा
गाता इसे बीज-बोते
उसका बोया जो भी खाते
उनके काज सुफल होते
लय इसकी सीखी
पुरखों ने
जलपाखी के कूजन से
वन्शीधुन के औ' अजान के
इसमें सुर हैं मिले-जुले
हमने जपा इसे जब-जब भी
मन के सभी कपाट खुले
आखर-आखर
इसके उपजे
नेह-बसे घर-आंगन से