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गीत-मन संकट में / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र

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बन्धु ...
गीत-मन संकट में है
उसे बचाओ

आबोहवा वनैली व्यापी गाँव-गाँव में
वंशी चुप है - चुभी अनी है थके पाँव में

उजड़ गये
जो घर-आँगन हैं उन्हें बसाओ

महाहाट की लीला ने जन-मन को मोहां
अबके कवि रच रहे उसी का जिंगिल-दोहा

चेतो - तुम भी
उनकी ही महिमा मत गाओ

तुलसी-सूर-कबीर थोक के भाव बिकाने
बुने शाह ने अंधे युग के ताने-बाने

मौन पड़ी साधू की तंत्री
उसे बजाओ