गीत अपने प्यार का मैं गाऊँ जिनमें झूमकर
वे सभी स्वर और व्यंजन वर्णमाला में नहीं।
भीग जाना जब कभी बरसात में तुम
मान लेना गीत का मुखड़ा गया बन।
बारिशें जैसे उतरती हैं जमीं तक
प्यार में वैसे उतरता बावला मन।
जो अलौकिक बात इस बरसात में मिल जाएगी
वो किसी भी चर्च मस्जिद या शिवाला में नहीं।
देखना नदिया किनारे बैठकर तुम
तोड़ती तट बन्ध कुछ लहरें मिलेंगी।
मान लेना गीत के ये अंतरे हैं
औ मचलती धार में बहरें मिलेंगी।
जो सिखाये प्यार का अध्याय नदिया की तरह
शिक्षिका ऐसी किसी भी पाठशाला में नहीं।