भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत और गज़ल / विमल राजस्थानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुरमई नज़रें उठीं तो चाँदनी सिहर गयी
मदभरी आँखें झुकीं तो आरती उतर गयी
है गज़ल यदि निर्झरी-
तो गीत है गोदावरी
एक सुमधुर भैरवी-
तो दूसरा आसावरी
एक चंचल, चुलबुली-
तो दूसरा गंभीर है
एक चितवन बाण है-
तो दूसरी शमशीर है
एक झरने-सी फुदकती चली प्यासों की तरफ
दूसरे की आत्मा एक झील-सी ठहर गयी
एक चंद्रानन यहाँ तो
दूसरी है चाँदनी
राग का अनुराग है यदि-
गीत, गजलें रागिनी
खिलखिला कर हँसें गज़लें-
हुश्न के आगोश में
गीत लेटा रस-कलश की-
छाँह ले, प्रिय-गोद में
गीत छाया रहा नभ में भरे मेघों की तरह
गज़ल हँस कर दूर्वा पर ओस-सी बिखर गयी।