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गीत की सरन / महेश उपाध्याय

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लहरों से सीख लिए
सारे ठनगन !
ओरी ! ओ ! नागरी दुल्हन

कलियों की उर्वशी हँसी
तेरे हर अंग में बसी
फैलाती गन्ध की शिकन

दीप-शिखा देह सोनई
अन्धियारा चीरती गई
तेरे अनुभाव की किरण

आँखों में छन्द आँजकर
रसवन्ती देह माँजकर
जा बैठी गीत की सरन