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गीत कौन सा मैं गाऊँ / कुलवंत सिंह

जग ये जैसे रो रहा है
मातम घर घर हो रहा है.
गीत कौन सा मैं गाऊँ ?
कैसे दुनिया को बहलाऊँ ?

देने सुत को एक निवाला
बिक जाती राहों में बाला.
कौन धान की हांडी लाऊँ ?
भर भर पेट उन्हें खिलाऊँ ?

खेल अनय का हो रहा है
न्याय चक्षु बंद सो रहा है.
कौन प्रभाती राग सुनाऊँ ?
इस धरा पर न्याय जगाऊँ ?

दो कौड़ी बिकता ईमान
’क्यू’ में खड़ा हुआ इंसान.
कौन ज्योति का दीप जलाऊँ ?
मानस को अंतस दिखलाऊँ ?

सत्य सुबकता कोने में
झूठ दमकता पैसे में.
कौन कोर्ट का निर्णय लाऊँ ?
झूठ सच का अंतर बतलाऊँ ?