गीत ग़ज़लें थे सिखाते रोज़ किंकर जी
खोज कर ग़लती बताते रोज़ किंकर जी
सीख पाये हर विधा को सोच थी उनकी
कार्यशाला थे चलाते रोज़ किंकर जी
सर्व प्रतिभा के धनी थे श्रेष्ठ सम्पादक
देश में चर्चित कहाते रोज़ किंकर जी
प्रेम से जो भी बुलाता वे वहाँ जाते
मंच पर ग़ज़लें सुनाते रोज़ किंकर जी
सैकड़ों सम्मान पाकर भी न इतराते
नम्र ही खुद को दिखाते रोज़ किंकर जी
अन्त में निष्ठुर बने क्यों छोड़कर दुनिया
आप हम सबको रुलाते रोज़ किंकर जी
रिक्त आसन आपका है कौन बैठेगा
क्यों न आकर यह सुझाते रोज़ किंकर जी