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गीत गाते चलो / बाल गंगाधर 'बागी'

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गीत गाते चलो मुस्कुराते चलो
बेजमीरों को इंसा बनाते चलो
जो गिरे खाईयों में गरीबी के हैं
हाथ आगे भी उनके बढ़ाते चलो
गर तुम्हें है गुरुर हो बुलंदी पे तुम
कब्र से अपनी आंखे मिलाते चलो
न सिकन्दर रहा तेरा फिर है क्या
कुछ मोहब्बत ही दिल से बढ़ाते चलो
अजीज गर किसी का कोई न हो
नफरतों की दीवारें गिराते चलो
आओ मिलके भी गायें खुशी के दो पल
ज़ालिमों को ये नग्मा सुनाते चलो
होके ज़ालिम समझता जो इंसान है
आइना सामने उनके लाते रहो

गंदे अछूत हो नीच के ही नीच हो
जब भी अछूत पढ़े लड़े न भयभीत हो
दफ्तर में काम करें जीना दूभर है
छुआछूत का बर्ताव सहना हर पल है

हम साफ पानी पीने को तरसते हैं
लेकिन वो ब्रांडेड शराब पीते हैं