भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीत गाते रहे गुनगुनाते रहे / आनंद कृष्ण
Kavita Kosh से
गीत गाते रहे गुनगुनाते रहे।
रात भर महफिलों को सजाते रहे।
सबने देखी हमारी हंसी और हम-
आंसुओं से स्वयं को छुपाते रहे।
सुर्ख फूलों के आँचल ये लिख जायेंगे-
हम बनाते रहे वो मिटाते रहे।
रेत पर नक्शे-पा छोड़ने की सज़ा
उम्र भर फासलों में ही पाते रहे।
सबने यारों पे भी शक किया है मगर-
हम रकीबों को कासिद बनाते रहे।
हमको आती है यारो! ये सुनकर हंसी-
"वो हमारे लिए दिल जलाते रहे। "
नीली आंखों के खंजर चुभे जब उन्हें-
दर्द में "कृष्ण" के गीत गाते रहे।