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गीत बुने हैं हमने / सीमा अग्रवाल
Kavita Kosh से
बारिश के धागों से
गीत बुने हैं हमने
नम तो होंगे ही
साँसों की बढ़ती
झुंझलाहट को जाँचा
थकी थकी पैड़ी की
आहट को बाँचा
बूँदों के मटकों पर
सूत मथे जीवन के
भीगे से सीले से
भ्रम तो होंगे ही
लहर लहर खंगाली
धारों को फटका
रेतीली चादर का
तार तार झटका
पल पल को भटकाया
है उजड़े द्वीपों पर
शब्दों में गीले
मौसम तो होंगे ही