गीत मल्हार / बाबा बैद्यनाथ झा
घिर आये हैं मेघ गगन में, मैं घबड़ाती हूँ।
गाकर राग मल्हार सजन को, पास बुलाती हूँ॥
ऋतु पावस यह आकर मुझको, पल-पल तड़पाती,
बादल अगर जोर से गरजे, तो मैं डर जाती।
किसको दुखड़ा आज सुनाऊँ, घर है जब सूना,
दुख को अगर भूलना चाहूँ, बढ़ जाता दूना।
जाने उनको कभी न देती, अब पछताती हूँ।
गाकर राग मल्हार सजन को, पास बुलाती हूँ॥
रे मेघा संदेशा लेकर, उनको पहुँचाओ,
मेरी व्यथा सुना प्रियतम को, वापस ले आओ।
कहना सजनी राह देखती, रोती रहती है,
विरह वेदना अतिशय भारी, प्रतिपल सहती है।
आस तुम्हीं पर बादल भैया, तो जी पाती हूँ।
गाकर राग मल्हार सजन को, पास बुलाती हूँ॥
सखियाँ सब जोड़े में रहकर, मुझको तरसातीं,
झूले झूल नित्य उपवन में, मन को ललचातीं।
एकाकी रहकर मैं सबके, व्यंग्य वाण सहती,
अपना ही दुर्भाग्य समझ कर, हरदम चुप रहती।
मन है दुखी मगर मुस्काकर, घर आ जाती हूँ।
गाकर राग मल्हार सजन को, पास बुलाती हूँ॥