गीत मुझे लिखते आए हैं / आदर्श सिंह 'निखिल'
प्यारे गीतकार का तमगा जाओ किसी और को दे दो।
मैं क्या गीत लिखूंगा साहब गीत मुझे लिखते आए हैं।
इस चिंतन के आयामों की
दूर वहां तक जहां परिधि है
उन नंदनवन तक गीतों की
पसरी हुई मनोरम निधि है
उसके पार कहीं भावों की
सरिताएं हैं जिनके तट पर
मुझे नहीं मालूम गीत कब
लाते हैं अपने घट भर कर
सीमाओं के पार मुझे ही गीत उठाकर के लाए हैं
प्यारे गीतकार का तमगा जाओ किसी और को दे दो
मैं क्या गीत लिखूंगा साहब गीत मुझे लिखते आए हैं।
नहीं मुझे कुछ चाह ख्याति की
और न ही कुछ जय की मंशा
यदि करना है मेरी छोड़ो
बस गीतों की करो प्रशंसा
पंच तत्व की इस काया से
भली भांति परिचित हैं कैसे
मेरे सारे ही चरित्र इन
शब्दों में परिणित हैं कैसे
मेरे जैसे कितने ही इनकी छाया में सुस्ताए हैं
प्यारे गीतकार का तमगा जाओ किसी और को दे दो
मैं क्या गीत लिखूंगा साहब गीत मुझे लिखते आए हैं।
सुनता हूँ तुम लोग गीत के
विन्यासों को बांच रहे हो
भावों के अथाह सागर का
मंथन करके जांच रहे हो
मैं क्या उनका करूँ विवेचन
जो मेरा अस्तित्व समेटे
मुझ जैसे जाने कितनों के
अलिखित से व्यक्तित्व समेटे
सूखा एक सरोवर सा मैं गीत मेघ बनकर छाए हैं
प्यारे गीतकार का तमगा जाओ किसी और को दे दो
मैं क्या गीत लिखूंगा साहब गीत मुझे लिखते आए हैं।