गीत में भर दो मेरा जीवन
शत -शताब्दियों तक मेरे स्वर
मुख-मुख से परिवर्तित होकर
यात्रा करें देश-देशांतर
युग-युग यह छवि मेरी खिलती रहे मधुर कविता बन
मध्य निशा में तिमिर पारकर
पहुँच ज्योति के स्वर्ण-द्वार पर
लाऊँ प्रतिभा-घट उतारकर
समझ न कोई सके कहाँ से आती कविता क्षण-क्षण
जग मेरी साधना न जाने
पास खड़े न मुझे पहचाने
बस मेरी कृतियों को माने
आदर-श्रद्धा का अधिकारी मैं न कभी दुर्बल-मन