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गीत राष्ट्र के / कृष्णा सिंह

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ई पावन स्वर्ण जयनती के ऐलै सुखमय पर्व मनोहर ।
भारत के स्वातंत्रय-दीप बापू के अनुपम पुण्य धरोहर ।
जहोॅ जन-जन के गौरव गरिमा तप-बल के अमिट कहानी छै ।
आर्य भूमि के संकल्पोॅ के प्रेरक प्रथम निशानी छै ।
नील गगन मेॅ तेज-तेज छै मोहैं छै उज्जवल तारा ।
एक्के नै नब्बे करोड़, अविचल वीरोॅ के छै प्यारा ।
अमर शहीदोॅ के स्मारक रश्मि-पूंज यौवन के ।
पंचशील के प्राण सचेतक संस्कृति छै जीवन के ।
तरुणोॅ के हुंकार सिन्धु, गर्जन वैभव हिमगिरि के ।
जगत वंद्य आलोकपूर्ण, आकर्षण भू मण्डल के ।
नवयुग भाग्यविधाता आरो अक्षय शौर्य उद्धोषक ।
अनय, तमिस्त्रा, अहंकार आरो दानवकुल संहारक ।
सुषमा, सुख, समृद्धि, सौरभमय श्रद्धा-सुमन चढ़ावोॅ ।
घर-घर संयम, स्नेह सुमति के निर्मल धार बहाबोॅ ।
जात-पात के बन्धन तोड़ोॅ, प्रेमगीत मिली गाबोॅ ।
बापू के सपना पूरै लेॅ सब मिली कदम बढ़ाबोॅ ।
आबोॅ एकरा अभिनन्दन मेॅ राष्ट्रध्वजा फहराबोॅ ।
आशा-दीप जलाबोॅ सुमधुर, गीत राष्ट्र के गाबोेॅ ।