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गीत वादी ने कोई सुनाया नहीं / रंजना वर्मा
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गीत वादी ने कोई सुनाया नहीं
खिल गयी धूप पर सर पर छाया नहीं
अश्क़ बहते रहे पीर घुलती रही
वो बहुत देर तक मुस्कुराया नहीं
चीख तो थी सभी ने सुनी जुल्म की
पर मदद के लिये कोई आया नहीं
लोग अपने ही घर में सिमटते रहे
बढ़ के लेकिन किसी ने बचाया नहीं
तू कभी तो चला आ हमारी तरफ़
फिर न कहना किसी ने बुलाया नहीं
किसलिये खुद को कहता है बेआसरा
कौन है जिस पर कुदरत का साया नहीं
तूने वादे किये थे हज़ारों मगर
ये अलग बात है कि निभाया नहीं