भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गीत

मांझी! न बजाओ वंशी मेरा मन डोलता

मेरा मन डोलता है जैसे जल डोलता

जल का जहाज जैसे पल -पल डोलता

मांझी! न बजाओ वंशी मेरा तृण टूटता

तृन का निवास जैसे बन-बन टूटता

मांझी! न बजाओ वंशी मेरा मन झूमता

मेरा मन झूमता है तेरा तन एक बन झूमता।