भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीत / नीलाभ
Kavita Kosh से
लाल-लाल हो चला है, हो चला है आसमान
लपटों की लाली है, रात भले काली है, लाली है रक्त की
लाएगी नव विहान
रक्त बोले, लपट बोले, गाए
भीषण गान,
लाल-लाल हो चला है, हो चला है आसमान
आओ साथी सुर मिलाओ,
बारूदी राग गाओ,
छेड़ो समर तान, साथी गाओ भीषण गान
लाख-लाख कण्ठ से उठ रही है ये पुकार
मुक्ति चाही, जीवन चाहा, चाहा स्वाभिमान
लाल लाल हो चला है, हो चला है आसमान