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गीत / शकुन्त माथुर
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बुझा-बुझा गीत
सारा कुछ शीत
उलट गई सारी
बाँसुरी की रीत
बीत गई रैन
न निकल सके बैन
बँधे रुके
रोते रहे नैन
दुख न बँटा अपना
टूट गया सपना
थकी-थकी प्रीत
धोखा हुआ मीत
चाँदों में
तारों में
चलती राहों में
थकना ही थकना!