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गीत 10 / नौवाँ अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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कृत्य हम छी, यग हम छी, स्वधा हम छी, मंत्र हम
औषधि हम, घृत्त हम छी, अग्नि हम, हम ही हवन।
जगत के धाता हम्हीं छी
कर्म-फल दाता हम्हीं,
पूर्ण जानै जोग हम छी
हम पिता, माता हम्हीं,
हम सखा, हम परपितामह, ओम् नामक मंत्र हम।
ऋक् हम्हीं छी, साम हम छी
यर्जु हम, अथर्व हम,
प्राप्त होवै जोग हम छी
जगत के भर्तार हम,
जगत के स्वामी हम्हीं छी, शुभाशुभ के मंत्र हम।
सकल जग के बास हम छी
हम शरण लै योग्य छी,
हम जगत उत्पत्ति कर्ता
हम प्रलय के हेतु छी,
हम न प्रति उपकार चाहै छी, परम स्वतंत्र हम।
जगत के आधार हम
अव्यक्त परमनिधान छी,
चीर अविनाशी छिकौं हम
तप्त सूर्य समान हम,
आकर्षण हम मेघ के छी, मेघ के संयंत्र हम
मृत्यु हम, अमृत हम्हीं छी, सत्-असत् सब कर्म हम।