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गीत 6 / दशम अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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अपन विभूति योग शक्ति हे कृष्ण कही समझावोॅ
निज अमृत मय बचन युगेश्वर कहि विस्तारि सुनावोॅ।
हे जनार्दन, हमरोॅ मन में
जागल उत्कण्ठा छेॅ,
पान करौं वाणी अमृत रस
हय हमरोॅ इच्छा छेॅ,
दया करोॅ हमरा पर केशव, दिव्य अमृत बरसावोॅ।
श्री भगवान उवाच-
कहलन श्री भगवान, पार्थ-
हम्मर विभूति के जानोॅ,
छै अनन्त विस्तार हमर
हय परम सत्य तों मानोॅ,
हमर तेज बल विद्या अरु ऐश्वर्य श्रवण सुख पावौ।
हे अर्जुन सब जीव के अन्दर
स्थित आतमा हम छी,
सब भूतोॅ में आदि-मध्य
आरो अवसान हम्हीं छी,
गुडाकेश, अज्ञान निन्द के सहजे दूर भगावोॅ
हमर विभूति योग शक्ति हे पार्थ जानि तों पावोॅ।