भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत 6 / पन्द्रहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिव्य तेज हमरोॅ छिक जानोॅ
सूर्य-चन्द्र-अग्नि में व्यापित तेज हमर तों मानोॅ।

सकल नेत्र-मन-वाणी में व्यापित ऊ तेज हमर छै
ज्ञानी जन के संस्कार में बसलोॅ, तेज हमर छै
धारण तत्त्व हम्हीं धरती के छी, हमरा पहचानोॅ
दिव्य तेज हमरोॅ छिक जानोॅ।

अमृत तत्त्व बनी केॅ सब औषध के पुष्ट करै छी
सकल वनस्पति के अमृतमय हम संजीवन दै छी
सब औषध के पोषक तत्त्व हम्हीं छी अर्जुन मानोॅ
दिव्य तेज हमरोॅ छिक जानोॅ।

सब प्राणी के रोॅ शरीर में प्राण तत्त्व हम ही छी
हम अपान, संयुक्त अग्नि छी, जन-जन के पाचन छी
हम अन्तर्यामी स्वरूप, हर प्राणी में छी ध्यानोॅ
दिव्य तेज हमरोॅ छिक जानोॅ।

हमरे से स्मृति ज्ञान छै, अरु संशय-विस्मय छै
हम ही जानै जोग वेद-विद,सब हमरा जानै छै
हम समस्त वेदान्त के कर्ता छी, हमरा पहचानोॅ
दिव्य तेज हमरोॅ छिक जानोॅ।

कर्मकाण्ड में, ज्ञान काण्ड में, सब टा ज्ञान हम्हीं छी
सब टा शंका समाधान, सम्पूर्ण निदान हम्हीं छी
हम सम्पूर्ण शान्ति के दाता, परम शान्ति छी मानोॅ
दिव्य तेज हमरोॅ छिक जानोॅ।