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गीत 6 / प्रशान्त मिश्रा 'मन'
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प्रेम किया है,
उन शब्दों से जिनसे उसका नाम बना है।
प्रेम किया है,
उस संयम से जिस से मेरा काम बना है।
जान सके दुनिया उसको भी इसीलिए अपने गीतों में-
मैंने उसका नाम लिया है।
हाँ! हाँ! मैंने ...
प्रेम किया है,
उस दर्पण से जिसमें मुझको वो दिखती थी।
प्रेम किया है,
उस चन्दन से जिसका सौरभ वो लिखती थी।
उस के बिन थे स्वप्न अधूरे किन्तु साथ में जीकर मैंने
अपना हर इक स्वप्न जिया है।
हाँ! हाँ! मैंने ...
प्रेम किया उस
रस से मैंने जिस रस ने मरुथल को सीचा।
प्रेम किया उस
मन से मैंने जो मन है बस मेरे मन सा।
जिसने अपनी कोमलता से सभी प्रश्न का हल बतलाया-
उसको अपना नाम दिया है।
हाँ! हाँ! मैंने ...