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गीत 9 / बारहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

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वहेॅ भगत हमरा प्रिय लागै
जौने सब शुभ-अशुभ काज के सहज भाव से त्यागै।

जे नै हरखित हुऐ कखनियो, जे नै द्वेष विचारै
शोकाकुल नै हुऐ कखनियो, जे न कामना धारै
झूठ-कपट-चोरी-हिन्सा से जे न कभी अनुरागै
वहेॅ भगत हमरा प्रिय लागै।

जे शत्रु अरु मित्र, मान-अपमान एक रंग जानै
सरदी-गरमी अरु दुख-सुख के जे प्राणी सम मानै
जे आसक्ति रहित प्राणी जग से सम्पूर्ण विरागै
वहेॅ भगत हमरा प्रिय लागै।

जैसे पेड़ लकड़हारा से, कभी न बैर विचारै
आरो सींचनहार पुरुष के प्रति अनुराग न धारै
दोनों के फल एक रंग दै, अपनावै नै त्यागै
वहेॅ भगत हमरा प्रिय लागै।