भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीले होगे मांटी, चिखला बनिस धुरी हर / कोदूराम दलित
Kavita Kosh से
गीले होगे मांटी, चिखला बनिस धुरी हर,
बपुरी बसुधा के बुताइस पियास हर।
हरियागे भुइयां सुग्धर मखेलमलसाही,
जामिस हे बन, उल्होइस कांदी-घास हर।।
जोहत रहिन गंज दिन ले जेकर बांट,
खेतिहर-मन के पूरन होगे आस हर।
सुरुज लजा के झांके बपुरा-ह-कभू-कभू,
"रस-बरसइया आइस चउमास हर"।।