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गुजरात मेरे ज़ेह्न से उतरे तो कहूँ कुछ / कांतिमोहन 'सोज़'
Kavita Kosh से
गुजरात मेरे ज़ेह्न से उतरे तो कहूँ कुछ।
आँखों में जो सैलाब है सूखे तो कहूँ कुछ।।
इंसान कहाँ मैं यहाँ पत्थर सा पड़ा हूँ
दिल से मेरे एक चीख़-सी निकले तो कहूँ कुछ।
हर चोट मेरे मान के कलेजे पे पड़ी है
हालत मेरे बीमार की संभले तो कहूँ कुछ।
हर फूल की आँखों से लहू फूट चला है
सूरत मेरे गुलज़ार की बदले तो कहूँ कुछ।
शैतान ने इंसान को फ़ौलाद बनाया
फ़ौलाद का ये आदमी पिघले तो कहूँ कुछ।
बैठा हूं लकीरें-सी कई खैंच रहा हूँ
इस ख़ाक से सूरत कोई उभरे तो तो कहूँ कुछ।
अब सोज़ के बस का तो नहीं कुछ भी कहीं भी
धरती ही कोई आग-सी उगले तो कहूँ कुछ।।
2002