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गुज़रते हुए-2 / अमृता भारती

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सबसे पहले
वह तेरे पैरों से लिपटा था

तूने रेल की पटरियाँ पार करते हुए
अपने बोझ की चर्चा की
और मैनें तेरी पिण्डलियाँ देखीं --
तेरे रोमों में फँसी हुई मकड़ी
मुझे नहीं मिली
जो अपने रेशे तेरी नसों में उगल रही थी
तूने भी केवल एक महीन धागे की बात की
जो हर आते पल
बोझ नीचे उतारकर
कुछ और ऊपर रेंगने लगता था

कुछ दिनों बाद तेरे पैर
धूप की तरह हलके
और शीत की तरह भारी थे
अब तेरे केश
घुटने नहीं
फ़र्श छूने लगे थे ।