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गुज़री शब बारहा उसने खु़द को सजाया होगा / शमशाद इलाही अंसारी
Kavita Kosh से
गुज़री शब बारहा उसने ख़ुद को सजाया होगा
आइने के रु-ब-रु अक़्स मेरा ही पाया होगा।
फ़ूलों से बादलों की किश्ती में बैठ कर
गीत कोई उसने मन में गुनगुनाया होगा।
मेरी छुअन मेरे बोसे के तस्सव्वुर में
चूम कर तकिया सीने पे दबाया होगा।
तहरीर कर चंद बातें पलकों की क़लम से
झौंके को मेरी जानिब उसने उडा़या होगा।
मेरे ख़यालों की हरारत से आया पसीना
"शम्स" देर तक उसने आँचल से सुखाया होगा।
रचनाकाल: 30.08.2002