गुज़रे मौसम का पता सुर्ख लबों पर रखना / रमेश 'कँवल'
गुज़़रे मौसम का पता सुर्ख़ लबों1 पर रखना
अपनी आंखों में मे रेक़ुर्ब2 का मंज़र रखना .
तुम गये साल महीनों को संजोकर रखना
याद आयेगी मेरी, याद बराबर रखना .
बंद कर नानतअल्लुक़4 के दरीचे को कभी
तुम मुलाक़ात के आंगन को मुनव्वर5 रखना .
अपनी सांसों में बसाले ना वफ़़ा की खु़शबू
अपने जूड़े को गुलाबों से मुअ़त्तर6 रखना .
एक दस्तक तुम्हें चौंकाती रहेगी अक्सर
इक दिया दिल के घरौदें मे जलाकर रखना। .
मेरे हिस्से में तबाही की घनी तल्खी7 है
तुम लबे-शीरीं8 के अमृत को बचाकर रखना .
एक जलता हुआ सूरज है मेरी ज़ात में क़ैद
तुम भी लहराता हुआ तन का समुन्दर रखना .
गर्द जिस पर नम हो-साल9 की जमने पाये
दिल की दीवार पे इक ऐसा कलेन्डर रखना .
वो उभर आयेगी हाथों की लकीरों मे 'कँवल'
उसके मिल जाने का अहसास बराबर रखना .
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