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गुज़रे हुए लम्हों का कोई तो निशां छोड़ो / ईश्वरदत्त अंजुम
Kavita Kosh से
गुज़रे हुए लम्हों का कोई तो निशां छोड़ो
ख़ुशबू में जो डूबा हो इक ऐसा समां छोड़ो
हर दिल में खुशी भर दो हर शख्स यहां चहके
ये प्यार का मौसम है नफ़रत की ज़बां छोड़ो
हर शय पे बहार आये गुल बूटे निखर जाये
जिस राह से तुम गुज़रो खुशियों का जहां छोड़ो
टूटे हुए तारों में अब और न तुम उलझो
मिल पाएंगे फिर हम तुम ये वहमो-गुमां छोड़ो
हर दिल में उतर जाये हर दिल में समा जाये
दुनिया में तुम ऐ अंजुम वो तर्ज़े-बयां छोड़ो।