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गुज़ारिश है इतनी / सरोज परमार
Kavita Kosh से
तूने उनके ज़ेह्न में ऐसा
चेहरा उतारा राम का
वे ज़िन्दगी की पटरी से ही उतर गए.
क्यों कील ठोंक लगाते ही तस्वीर
उनकी धमनियों में
ख़ून सोख लेगी.
वे अपने ख़ुदा ख़ुद तलाश लेंगे
गुज़ारिश है इतनी
इन देवताओं को पिटारी में बन्द कर
रख दो दुतल्ले पर
और तुम आधी सदी के लिए सो जाओ
यक़ीनन वे सागर को पीना और उगलना
सीख जाएँगे.