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गुड़हल का पेड़-बारिश के बाद / तरुण

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कोठी के दरवाजे पर
बारिश की रात के बाद
आसन-मारे बैठे जटाधारी बाबा के जटा-जूट-सा
गुड़हल का पन्नामणि-सा एक हरा-कच्छ पेड़
भीनी-भीनी पवन-तरंगों में डोल रहा है अपनी मौज में-
खूब गहरे लाल-लाल मोटे-मोटे गहके-गहके
इतराते फूलों वाला।
वर्षा की मोटी-मोटी जल-बूँदें
अभी अटकी हैं उसकी बरौनियों में।

आकाश अब साफ हो चला है
धूप निकल आई है मद्विम-मद्विम रोशनी वाली।

चमक रही हैं उजली बूँदें
मटक-मटक करती गाँव की छोरी की
गई शाम मेले में खरीदी गले की चेन के
काँच-सितारों की-सी।
या, लॉन में मचलते तन्दुरुस्त बालकों की
हँसती आँखों के टम्-टम् तारे-सी।
मेरा मन नन्ही-सोसनी चिड़िया के
साथ उड़ रहा है।

1990