भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गुड़िया की शादी / एस. मनोज
Kavita Kosh से
नहीं करूंगी नाच और नखड़े
मैं कहती हूँ पापा जी
मेरी कुछ मांगे सुन-सुनकर
खोना नहीं तू आपा जी
जल्दी जाओ तुम बाज़ार
गुड़िया ला दो एक हजार
लंबी गुड़िया, छोटी गुड़िया
कुछ पतली, कुछ मोटी गुड़िया
गुड़िया के कपड़े भी लाना
नहीं पड़े फिर उसे सजाना
नथिया, टीका, कंगना, बाली
कोई अंग रहे ना खाली
गुड्डे-गुड़ियों का हो खेला
आंगन में फिर लगेगा मेला
टोले भर के बच्चे होंगे
नहीं झूठे सब सच्चे होंगे
सजा धजाकर गुड़िया को मैं
ब्याह रचाने जाऊंगी
दीदी, भैया, मम्मी को भी
सबको भोज खिलाऊंगी।