भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गुड़िया सोई है / प्रकाश मनु
Kavita Kosh से
गुड़िया मेरी सोई है,
वह सपनों में खोई है।
आ जा चंदा प्यारे, आ,
थोड़ी मधुर चांदनी ला।
आओ तारो, आओ ना,
थोड़ी झिलमिल लाओ ना।
आओ परियो, आ जाओ,
हंसी सुहानी दे जाओ।
आ जा नदिया, आ जा ना,
मीठी कल-कल दे जा ना।
ज्यादा नहीं मचाओ शोर,
एक पंख दे जाओ मोर।
जब जागेगी मेरी गुड़िया,
तब गाएगी मेरी गुड़िया।
मैं दुनिया की राजदुलारी,
मुझमें है ये निधियां सारी।
नाचेगी, फिर गाएगी वह,
कितना कुछ कह जाएगी वह।