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गुड़िया / गरिमा सक्सेना
Kavita Kosh से
आज सुबह से
गुड़िया का मुखड़ा
उदास है
गुड़िया, गुड़िया को सीने से
लिपटायी है
भींच रही मुठ्ठी अंदर से
घबरायी है
स्मृतियों ने
पहन लिया
डर का लिबास है
छुवन-छुवन का अंतर
उसको समझ आ रहा
बार-बार उनका घर आना
नहीं भा रहा
डर से दूर
कहाँ जाये
डर आसपास है
सोच रही है मम्मी को
सबकुछ बतला दूँ
एक चोट भीतर है
उसको भी दिखला दूँ
पर क्या बोले
इस घर में वह
बड़ा खास है