भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गुड़ मिलेगा / नागार्जुन
Kavita Kosh से
गूंगा रहोगे
गुड़ मिलेगा
रुत हँसेगी
दिल खिलेगा
पैसे झरेंगे
पेड़ हिलेगा
सिर गायब,
टोपा सिलेगा
गूंगा रहोगे
गुड़ मिलेगा
(1988 में रचित)