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गुड्डू की कविता / नरेन्द्र जैन
Kavita Kosh से
वह कुछ
ज़्यादा नहीं जानती
छोटे-छोटे खिलौने रेडियो
छोटे-छोटे खिलौने सैनिक
छोटे-छोटे खिलौने पलंग
छोटे-छोटे खिलौने कुर्सियाँ
और रंग-बिरंगी मोटरें
वह
अभी घर जाएगी
और रेडियो सुनेगी
वह अभी रात को
इस पलंग पर सोयेगी
वह
छोटे से रंगीन घर के दरवाज़े खोल देगी
अभी जो रखा है उसकी हथेली पर
छोटी-छोटी
कुर्सियों पर बैठी
गुड्डू मोटरों का आना-जाना देखती रहेगी
एक पूरा घर-संसार
मैंने उसे दिया है
वह ख़ुश है और ज़्यादा कुछ नहीं जानती