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गुड्डू गुंडा की जै ब्वालौ / सुशील सिद्धार्थ

गुड्डू गंुडा की जै ब्वालौ॥

दारू पी कै गरियाय रहा
ऊ संड़वा जस बम्बाय रहा
ऊ पंड़वा जस अइंड्याय रहा
चउराहे प जूता खाय रहा
गुड्डू गंुडा की जै ब्वालौ॥

उइकी आंखिन मा कीचरु है
पांवन मा बइठ सनीचरु है
अपने बप्पा का लीचरु है
चौहद्दी भरेम फटीचरु है
गुड्डू गंुडा की जै ब्वालौ॥

बंभनई देखावै दलितन का
गा कयू दांय जमिकै हनका
मनुवाद क टूटि गवा मनका
अब घूमि रहा सनका सनका
गुड्डू गंुडा की जै ब्वालौ॥

जौ मिलै जबर प्वांकै लागै
दुनहू बगलै झांकै लागै
ऊ अपनि लार स्वांकै लागै
दद्दू कहि कहि र्वांकै लागै
गुड्डू गंुडा की जै ब्वालौ॥