भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गुणी / बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा ‘बिन्दु’
Kavita Kosh से
अब न कोई राजा – रानी
अब ना पंडित – ज्ञानी
इनमें है कोई अगर तो
उनकी अलग कहानी।
नाम वाला जो कोई है
दागी उनके पीछे
सरल बने दिखावे भर का
क्या ना करता नीचे।
मुख में राम बगल में छुरी
रखे मृग सा कस्तुरी
कलियुगी पैसा ही प्यारा
लालच यह अंगूरी।
ठग विद्या सीखते पहले
फिर दुकान चमकाते
मुर्खों की तो कमी नहीं है
फिर दाव आजमाते।
जब भंडा इनका फूटता
करोड़पति बन जाते
अज्ञ इनका साथ है देता
इनका ही गुण गाते।
अब आँखें खुली हैं कुछ की
बदल गये हैं पढ़के
सत्य – असत्य समझ रहे हैं
बातें करते चढ़के।
चमक-धमक दिखावा भर है
इस पर मत जाना तुम
कहे “बिन्दु” गुणी को खोजो
दोस्त बन जाना तुम।