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गुदड़ी का लाल / लावण्या शाह
Kavita Kosh से
मैं अध जागा अध सोया क्यों हूँ ?
मैं अब भी भूखा प्यासा क्यों हूँ ?
क्या भारत मेरा देश नहीं है ?
क्या मैं भारत का लाल नहीं हूँ ?
क्यों तन पर चिथड़े हैं मेरे ?
क्यों मन मेरा रीता उदास है ?
क्यों ईश्वर मुझसे छिपा हुआ है ?
क्यों जीवन बोझ बना हुआ है ?
आँखें मेरी सोएं तो कैसे ?
और वे रोएं भी तो कैसे ?
क्या हासिल होगा रोने से ?
दुःख जड़ गहरे पानी पैठा है !
क्या मैं भारत का बाल नहीं ?
क्या मैं भी तेरा लाल नहीं ?
क्यों सौभाग्य मेरे भाल नहीं ?
क्यों प्रश्न चिह्न है जीवन मेरा ?
बड़े आदमी बनने का सपना
खुली आँखों से देख रहा हूँ !
माता अब मेरे अश्रू पोंछ ले
क्या मैं गुड़दी का लाल नहीं ?