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गुनगुनाने से चमक आई चमन में आज तक / भोला पंडित प्रणयी

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गुनगुनाने से चमक आई चमन में आज तक,
मुस्कराने से महक आई चमन में आज तक ।

पंछियों ने मंत्र पढ़-पढ़ पेड़ को बौरा दिया,
गीत ने भी पत्थरों की कुक्षि को पिघला दिया ।
कौन कहता है जलेगी अब नहीं ये तीलियॉं
आजमाने से खनक आई चमन में आज तक ।

चमन के शृंगार में कब से लगे मज़दूर हैं,
फिर न जाने आज वे क्यों शून्य में मज़बूर हैं।
जो धरोहर है बची अब देख लो इतिहास उसका
श्रम सजाने से दमक आई चमन में आज तक ।

आज तक झंडे गड़े हैं शक्ति के संचार से,
एकता को बल मिला है, सरफरोशी प्यार से ।
अब नहीं हो चूक मौजूँ आज का विपरीत है
सर कटाने से झलक आई चमन में आज तक ।