गुनगुनी सी धूप में छाया न कर
मस्त मौसम का मज़ा ज़ाया न कर
डालियाँ झँझोड़ कर जाया न कर
कोंपलों पर जुल्म यूँ ढाया न कर
मुस्करा कुछ तो खुशी के वास्ते
शुभ घड़ी में मुँह को लटकाया न कर
बेरुख़ी, नाराज़गी, शिकवा, गिला
हर किसी के घर में ले जाया न कर
सादगी में रूप कुछ कम तो न था
बन-सँवर कर और तड़पाया न कर
लाज रख ए 'प्राण' बढ़ती उम्र की
चोंचले बढ़-चढ़ कर दिखलाया न कर