भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गुनगुनी सी धूप में छाया न कर / प्राण शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गुनगुनी सी धूप में छाया न कर
मस्त मौसम का मज़ा ज़ाया न कर

डालियाँ झँझोड़ कर जाया न कर
कोंपलों पर जुल्म यूँ ढाया न कर

मुस्करा कुछ तो खुशी के वास्ते
शुभ घड़ी में मुँह को लटकाया न कर

बेरुख़ी, नाराज़गी, शिकवा, गिला
हर किसी के घर में ले जाया न कर

सादगी में रूप कुछ कम तो न था
बन-सँवर कर और तड़पाया न कर

लाज रख ए 'प्राण' बढ़ती उम्र की
चोंचले बढ़-चढ़ कर दिखलाया न कर