भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गुप्त नदियाँ / रोसारियो त्रोंकोसो

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बेतरतीब हो गया है यह शहर मेरे लिए
हर एक सड़क बिल्कुल अलग दिखती हुई

जाने-पहचाने रास्ते भी
विश्वसनीय औऱ आसान नही रहे
चौराहे का बूढ़ा वृक्ष अब वहाँ नही
छोटे-छोटे घर भी नही अब वहाँ
जो अपने हाथों मे समेट लेते थे रात

निर्वस्त्र पुतले
शीशे की खुली क़ब्रों से
सारे महलों को नष्ट होते देखते हैं
अपनी देह को
गुप्त नदियों मे मुक्त हो जाने देती हूँ मै
यह संसार सूर्य का सूखा विस्तार है
चूहों औऱ बिच्छुओं का उत्सव है यह।

मूल स्पानी भाषा से पूजा अनिल द्वारा अनुदित