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गुफ़्तगू ये हवा कर रही है / रंजना वर्मा

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गुफ़्तगू ये हवा कर रही है
रहबरी दास्ताँ बन गयी है

तुम मुझे इस तरह से न देखो
हैं थके नींद सी आ रही है

बन्द कमरों में सरगोशियां हैं
कान में जाने क्या कह गयी है

वादियाँ सुगबुगाने लगी हैं
ख़ामुशी को नज़र लग गयी है

दिल को आराम कैसे मिले जब
हो दुआ बेअसर हर गयी है

इतने बेचैन हैं जिंदगी में
कुछ खलिश सी कहीं रह गयी है

इस क़दर बढ़ गयी है हताशा
अब तो उम्मीद हर बह गयी है