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गुब्बारे के साथ ज़िन्दगी / विस्साव शिम्बोर्स्का / विनोद दास

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क्या तुम स्मृतियों में लौटना चाहती हो
नहीं, मैं इसके बदले
खोई हुई चीज़ों को पाना चाहूँगी

दस्ताने
कोट, सूटकेस, छातों की बाढ़ आएगी
और आख़िर में, मैं कहूँगी
ये सब सामान किस काम के हैं ?

सेफ़्टी पिन, अलग-अलग ढब के दो कँघे
एक पेपर रोज़, एक चाक़ू
कुछ छल्ले आएँगे और
आख़िर में, मैं कहूँगी
तुम्हारी कमी मुझे ज़रा भी नहीं खली

कुँजी
कृपया घूमिए, बाहर आइए
अब तक तुम कहाँ छिपी हुई थी
अब मेरे कहने का समय है
तुममें जंग लग चुकी है, मेरे दोस्त !

हलफ़नामों
परमिटों और प्रश्नावलियों की
मूसलाधार बारिश होगी
और मैं कहूँगी
मैं तुम्हारे पीछे खिलता सूरज देख रही हूँ

मेरी घड़ी नदी में गिर गई
ऊपर उतराते ही मैं उसे पकड़ लूँगी
और फिर उससे रू - ब - रू कहूँगी
तुम्हारा तथाकथित समय खत्म हो चुका है

आख़िर में
एक गुब्बारा घर आएगा
जो हवा में पहले उड़ गया था
और मैं कहूँगी
यहाँ कोई बच्चा नहीं है
खुली खिड़की से
तुम बाहर उड़कर एक बहुत बड़ी दुनिया में चली जाओ
तुम्हें देखकर कोई और चीख़े : वो देखो !
और मैं तब रोऊँगा

अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास