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गुम हुए लोग / रंजना मिश्र
Kavita Kosh से
लोग जो लड़े, हारे और बचे रहे
कहाँ गुम हुए
इतिहास तो कथा उनकी
जो जीते या फिर खेत हुए
विजेता निकल गए घोड़े दौड़ाते
जो खेत रहे उनके स्मारक बनाए
शिलालेख लगाए
शेष क्या अब भी जीते हैं
अपनी हार के साथ
अपने शिविरों में अपनी घायल आत्मा लिए
या उन्होने फिर से निकाले कुदाल और मटके
शिशुओं को पीठ में बाँधा
और मेड़ों की मरम्मत में जुट गए
कि उन्होंने फिर से
चूल्हा सुलगाया और बस्तियाँ बसाईं
धुएँ ने रची आग और फिर से बिखरा संगीत जीवन का
अपनी हार और जीत को पीछे छोड़कर
ये हारे हुए गुमशुदा लोग
इतिहास की आँखों से बचकर
फिर से इतिहास लिखते हैं
कोई कुछ नहीं कहता
कवि मौन हैं
इतिहास बैठा है मृत क़ब्रगाहों में
या पीछा कर रहा विजय की तुमुल ध्वनियों का।