भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गुरुसिष हेरा कौ अंग / साखी / कबीर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऐसा कोई न मिले, हम कों दे उपदेस।
भौसागर में डूबता, कर गहि काढ़े केस॥1॥

ऐसा कोई न मिले, हम को लेइ पिछानि।
अपना करि किरपा करे, ले उतारै मैदानि॥2॥

ऐसा कोई ना मिले, राम भगति का गीत।
तनमन सौपे मृग ज्यूँ, सुने बधिक का गीत॥3॥

ऐसा कोई ना मिले, अपना घर देइ जराइ।
पंचूँ लरिका पटिक करि, रहै राम ल्यौ लाइ॥4॥

ऐसा कोई ना मिले, जासौ रहिये लागि।
सब जग जलता देखिये, अपणीं अपणीं आगि॥5॥
टिप्पणी: ख प्रति में इसके आगे यह दोहा है-

ऐसा कोई न मिले, बूझै सैन सुजान।
ढोल बजंता ना सुणौं, सुरवि बिहूँणा कान॥6॥

ऐसा कोई ना मिले, जासूँ कहूँ निसंक।
जासूँ हिरदे की कहूँ, सो फिरि माडै कंक॥6॥

ऐसा कोई ना मिले, सब बिधि देइ बताइ।
सुनि मण्डल मैं पुरिष एक, ताहि रहै ल्यो लाइ॥7॥

हम देखत जग जात है, जग देखत हम जाँह।
ऐसा कोई ना मिले, पकड़ि छुड़ावै बाँह॥8॥

तीनि सनेही बहु मिले, चौथे मिले न कोइ।
सबे पियारे राम के, बैठे परबसि होइ॥9॥

माया मिले महोर्बती, कूड़े आखै बेउ।
कोइ घाइल बेध्या ना मिलै, साईं हंदा सैण॥10॥

सारा सूरा बहु मिलें, घाइला मिले न कोइ।
घाइल ही घाइल मिले, तब राम भगति दिढ़ होइ॥11॥

टिप्पणी: ख-जब घाइल ही घाइल मिलै।
प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरौं, प्रेमी मिलै न कोइ।

प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, तब सब बिष अमृत होइ॥12॥
टिप्पणी: ख-जब प्रेमी ही प्रेमी मिलें।

हम घर जाल्या आपणाँ, लिया मुराड़ा हाथि।
अब घर जालौं तास का, जै चलै हमारे साथि॥13॥648॥
टिप्पणी: ख प्रति में इसके आगे ये दोहे हैं-

जाणै ईछूँ क्या नहीं, बूझि न कीया गौन।
भूलौ भूल्या मिल्या, पंथ बतावै कौन॥15॥

कबीर जानींदा बूझिया, मारग दिया बताइ।
चलता चलता तहाँ गया, जहाँ निरंजन राइ॥16॥