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गुरु की अस्तुति कहाँ लौं कीजै / सहजोबाई

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गुरु की अस्तुति कहाँ लौं कीजै। बदला कहा गुरु कूँ दीजै॥
गुरु का बदला दिया न जाई. मन में उपजत है सकुचाइ॥
इन नैनन जिन राम दिखाये। बंधन कोटि-कोटि मुक्ताये॥
अभय दान दीनन कूँ दीन्हे। देखत आप सरीखे कान्हे॥
गुरु की किरपा अपरम्पारै। गुन गावत मन रसना हारै॥
सेस सहस मुख निसिदिन गावै। गुरु अस्तुति का अन्त न पावै॥